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Sunday, June 26, 2016

एक अफसाना

तरन्नुम-ए -वफ़ा के अफ़साने पुराने हैं 
लोग कहते हैं हम आप के दीवाने है, 
आँखों से बह निकले थे अश्क जो 
उनमे आज भी सपने सुहाने है 

मोहब्बत तो खेल है नसीबों का 
और हम तो बदनसीब पुराने है 
तरन्नुम-ए -वफ़ा के अफ़साने पुराने हैं 
लोग कहते हैं हम आप के दीवाने है

भूल जा

जो बात जुबान पर  आ  न  सकी,
जो अश्क  आख्नो पे आ  न  सके 
कुछ  जस्बात  जो  अफसाना  बन कर  रह  गए,
वो चाहतें जो पूरी न हुई.
भूल जा उनको, ए-दिल,
बीतीं यादें समझ कर

हर आह जो दिल से निकली तो सही
कहीं ठिठक, रुक सी गयी
हर  जख्म  जिसे  वक़्त  ने  भरा  तो  सही
किसी की याद  जिन्हें  कुरेद  के  चली  गयी.
भूल जा  उनको, ए -दिल,
बीतीं  यादें  समझ  कर .

यादें

लम्हा लम्हा बिखरती यादों में,
तड़पते दिल के जज़्बातों में
धुधला गयी हैं यादें तेरी
सांझ के साये भी अब गहराते है. 

दूर थी मंजिलें मेरी,
इस लिए तेरा साथ माँगा था
पर ना मिल सका साथ, कोई गम नहीं
पहले भी तो दरिया अकेले ही लांघा  था.

पत्ता -पत्ता झड गया इस पतझड़ में
पर सावन फिर से आएगा.
नील गगन में काले बदल सा
गरज कर फिर से छाएगा.

फिर बरसेगी वर्षा ऋतु
फिर नाचे गे मोर कहीं
फिर आयेंगे कोमल कल्ले
फिर चमन यह  लहराएगा.

फिर आयेंगे नवल पत,
फिर से चहकेंगी कोयल भी
बढ़  कर बनेगा विशाल  तरु
कोई मंजरी  जिसपर  बलखाएगी.     

Thursday, March 3, 2016

निरार्थ

उन पैमानों में थोड़ी सी जाम छोड़ आएं हैं ।

माना काफ़िर हैं वो, मगर उनके पास
अपना धर्म और ईमान छोड़ आएं हैं |

टटोला जेबों को जब, फ़ोन था, चाभियां भी थीं
दुनियादारी की चौखट पे मगर, ज़मीर का सामान छोड़ आएं है।

न मिला पाएंगे नज़र तुमसे ऐ 'चिराग'  '
बीती उम्र के पास अपने ख़्वाब और अरमान छोड़ आएं हैं।

उन पैमानों में थोड़ी सी जाम छोड़ आएं हैं ।

बेवजह

मिटा दिया ज़हन से उनको 
मगर यादें उनकी कमरे में बिखरी थीं
हर दरो दीवार मुझसे उन्हें
भूलने की वजह मांगे।

अफ़साने बहुत से लिखे हमने 
कसीदे पढ़ें हैं उनकी मोहब्बत के बहुत,
तराना फिर भी क्यों हमसे उसे,
गुनगुनाने की वजह मांगे।

ज़ज़्बात कल भी वही थे, आज भी हैं,
मुकम्मल जहाँ कल भी था, आज भी है,
फिर भी ज़िन्दगी क्यों हमसे,
मुस्कुराने की वजह मांगे। 

ना वो समझेंगे हमारी मजबूरी को,
न वो जानेंगे हमारी बेवफाई का सबब,
ज़मीर की अदालत में दिल मेरा,
सबूतों की बिनाह मांगे। 

छोड़ आये वो रास्ते जिनपे मिले थे कभी,
भूला दिया तेरी मासूमियत के लम्हात चंद,
फिर भी ये गुमनाम साये क्यों मुझसे 
रौशनी की सुबह मांगे |