लम्हा लम्हा बिखरती यादों में,
तड़पते दिल के जज़्बातों में
धुधला गयी हैं यादें तेरी
सांझ के साये भी अब गहराते है.
दूर थी मंजिलें मेरी,
इस लिए तेरा साथ माँगा था
पर ना मिल सका साथ, कोई गम नहीं
पहले भी तो दरिया अकेले ही लांघा था.
पत्ता -पत्ता झड गया इस पतझड़ में
पर सावन फिर से आएगा.
नील गगन में काले बदल सा
गरज कर फिर से छाएगा.
फिर बरसेगी वर्षा ऋतु
फिर नाचे गे मोर कहीं
फिर आयेंगे कोमल कल्ले
फिर चमन यह लहराएगा.
फिर आयेंगे नवल पत,
फिर से चहकेंगी कोयल भी
बढ़ कर बनेगा विशाल तरु
कोई मंजरी जिसपर बलखाएगी.
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